सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

तू तो ठहरा निर्मोही ओ कान्हा ,तेरे आँखों डूब अब हम कहाँ जाएँ



इन आँखों को देख क्या देखूं और
कैसे निगाहें यहाँ से हटाऊं.
जाना मेरे वश में अब नही
चाहूँ भी तो मै कैसे जाऊं.

ये आँखें है या रस का सागर
जी भर के आज पी लूं मै.
सिमट जाए जिंदगी पल भर में
वो पल इन आँखों में जी लूं मै.

ये नयन तुम्हारे जैसे बरस रही करुणा
आनंद का जैसे सागर ये
समाना चाहे ये सब खुद में पर
छोटा सा मेरा गागर ये.

इतना भी सुन्दर क्या होता है कोई
जिस अंग को देखूं नजर ठहर जाए.
तू तो ठहरा निर्मोही ओ कान्हा
तेरे आँखों डूब अब हम कहाँ जाएँ.



2 comments:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

shyaam rang ranga her pal tera

santosh kumar jha ने कहा…

वाह ... बहुत सुन्दर कविता मन को भावुक कर दिया आभार / शुभ कामनाएं