शुक्रवार, 13 जुलाई 2018

!! फैलाकर आज अपने दोनों हाथ आए अपनाने हमें स्वयं जगन्नाथ !!

क्या अद्भूत अलौकिक दृश्य ये
इन नयनों की सार्थकता यही
नयनाभिराम नयनों के धाम जो
इन नयनों को गोचर हो रहे वही

जिनकी दृष्टि से त्रिभुवन सनाथ
वो जग के मालिक जग के नाथ
फैलाकर आज अपने दोनों हाथ
आए अपनाने हमें स्वयं जगन्नाथ

ये नयन विशाल देखो निहारे हमें
अपनी अकारण कृपा से तारे हमें
पास आने को अपने पुकारे हमें
बिना कोई शर्त आज स्वीकारे हमें

करुणा के सागर करुणावतार
आए लगाने भवसागर से पार
मिल रहा है सब बिन अधिकार
हे मन अब तो छोड़ माया संसार 

गुरुवार, 4 मई 2017

!! जनक सुता, राम प्रिया मात को नमन !!


सती शिरोमणी मिथिलेश कुमारी
प्राण प्रिया रघुकुल भूषण राम की
शुक्ल पक्ष नवमी वैशाख महीने में
आयी धरा पे जनक दुलारी जानकी।

पृथ्वी ने भेंट दिया है विदेहराज को
साक्षात लक्ष्मी स्वरूपा शिशु सीता
धरती माँ की गोद से मात सुनैना के
आँचल पहुँच गयी वो परम  पुनिता।

ऐश्वर्य व  वैभव से पूरित मिथिला में
समय संग बढ़ने लगी सुकुमारी सिया
शिव धनुष भंग कर रामचंद्र ने एकदिन
अर्धांगिनी रूप में उनका वरण किया।

जनक द्वार से निकल वैदही की डोली
पहुँची मात कौशल्या के अवध आँगन
सम्राट दशरथ की वधु के स्वागत में
हर तरफ़ हो रहा है उत्सव गान नर्तन।

समय ने ऐसा मोड़ लिया कि राम
राजा नहीं, वन के अधिकारी हुए
क्षण भर में छोड़-छाड़ सब वैभव
संग पति वन को चल पड़ी सिये।


जिस सिया ने धरती पर पग न धरा
वो अब नंगे पाँव वन में विचर रही है
जिसने बंदर भी चित्र में ही देखा था
वो जंगल में सुखपूर्वक चल रही है।

जनक महाराज की लाड़ली सिया
चक्रवर्ती सम्राट दशरथ की पुत्रवधू
ये सारी सुख सुविधा औ उपाधियाँ
पति धर्म के सामने सब लगा लघु।

इस त्याग को नमन,इस प्रेम को नमन
सतीत्व को नमन, पतिव्रत्य को नमन
जानकी नवमी के पुनीत अवसर पर
जनक सुता, राम  प्रिया मात को नमन।








सोमवार, 1 मई 2017

!! किशोरी मुझे फिर से अपना लो न !!

किशोरी मुझे चरणों से लगा लो न
बस एक़बार मुझे फिर अपना लो न।

किशोरी मुझे चरणों से लगा लो न।

तेरे ब्रज के बड़े चर्चे
सुने हैं मैंने संतों से
उस ब्रज में फिर से बुला लो न
किशोरी ब्रज में फिर से बुला लो न।


किशोरी तेरे चरण तो हैं दया के सागर
कुछ बूँदें मुझे सूखे पर भी छिड़का दो न।

किशोरी अपने चरणों से लगा लो न।


तेरा ब्रज है, तेरी यमुना
तेरा गोवर्धन
इन सबके दर्शन करा दो न

किशोरी मुझे फिर से अपना लो न
किशोरी मुझे चरणों से लगा न।


भूल हुई, ग़लती हुई जो भी किया
उन सबको बिसरा दो न
किशोरी उन सबको बिसरा दो न।

मुझे फिर से अपना बना लो न।

हम नादान बालक है
भले-बुरे की भी पहचान नही हमें
हम भटकों को अपने चरण से लगा लो न।

किशोरी मुझे फिर से अपना लो न
किशोरी मुझे चरणों से लगा न।


!! हे श्यामसुंदर ! हे गिरिधर ! !!

हे श्यामसुन्दर ! हे गिरिधर !
बरस रही है कृपा हर तरफ
पर रही तेरी नज़र जहाँ भी जिधर ।

हे श्यामसुन्दर ! हे गिरिधर !
हे श्यामसुन्दर! हे गिरिधर !

फँसी हूँ मैं माया के दलदल
माया भटकाए संग लिए मुझको
न जाने कहाँ  न जाने किधर ?


हे श्यामसुन्दर! हे गिरिधर!
हे श्यामसुन्दर! हे गिरिधर!

पहुँच न पाती मैं आप तलक
जतन नही इतना मैंने किया
कि आ पाऊँ आपके उधर ।

हे श्यामसुन्दर ! हे गिरिधर !
हे श्यामसुन्दर ! हे गिरिधर !

ऐसा करों न कि एक़बार तुम
नियम-वियम सब छोड़छाड
आ जाओ आप ही मेरे इधर ।

हे श्यामसुंदर ! हे गिरिधर !
हे श्यामसुन्दर ! हे गिरिधर !