शुक्रवार, 13 जुलाई 2018

!! फैलाकर आज अपने दोनों हाथ आए अपनाने हमें स्वयं जगन्नाथ !!

क्या अद्भूत अलौकिक दृश्य ये
इन नयनों की सार्थकता यही
नयनाभिराम नयनों के धाम जो
इन नयनों को गोचर हो रहे वही

जिनकी दृष्टि से त्रिभुवन सनाथ
वो जग के मालिक जग के नाथ
फैलाकर आज अपने दोनों हाथ
आए अपनाने हमें स्वयं जगन्नाथ

ये नयन विशाल देखो निहारे हमें
अपनी अकारण कृपा से तारे हमें
पास आने को अपने पुकारे हमें
बिना कोई शर्त आज स्वीकारे हमें

करुणा के सागर करुणावतार
आए लगाने भवसागर से पार
मिल रहा है सब बिन अधिकार
हे मन अब तो छोड़ माया संसार