गुरुवार, 4 मई 2017

!! जनक सुता, राम प्रिया मात को नमन !!


सती शिरोमणी मिथिलेश कुमारी
प्राण प्रिया रघुकुल भूषण राम की
शुक्ल पक्ष नवमी वैशाख महीने में
आयी धरा पे जनक दुलारी जानकी।

पृथ्वी ने भेंट दिया है विदेहराज को
साक्षात लक्ष्मी स्वरूपा शिशु सीता
धरती माँ की गोद से मात सुनैना के
आँचल पहुँच गयी वो परम  पुनिता।

ऐश्वर्य व  वैभव से पूरित मिथिला में
समय संग बढ़ने लगी सुकुमारी सिया
शिव धनुष भंग कर रामचंद्र ने एकदिन
अर्धांगिनी रूप में उनका वरण किया।

जनक द्वार से निकल वैदही की डोली
पहुँची मात कौशल्या के अवध आँगन
सम्राट दशरथ की वधु के स्वागत में
हर तरफ़ हो रहा है उत्सव गान नर्तन।

समय ने ऐसा मोड़ लिया कि राम
राजा नहीं, वन के अधिकारी हुए
क्षण भर में छोड़-छाड़ सब वैभव
संग पति वन को चल पड़ी सिये।


जिस सिया ने धरती पर पग न धरा
वो अब नंगे पाँव वन में विचर रही है
जिसने बंदर भी चित्र में ही देखा था
वो जंगल में सुखपूर्वक चल रही है।

जनक महाराज की लाड़ली सिया
चक्रवर्ती सम्राट दशरथ की पुत्रवधू
ये सारी सुख सुविधा औ उपाधियाँ
पति धर्म के सामने सब लगा लघु।

इस त्याग को नमन,इस प्रेम को नमन
सतीत्व को नमन, पतिव्रत्य को नमन
जानकी नवमी के पुनीत अवसर पर
जनक सुता, राम  प्रिया मात को नमन।