सोमवार, 1 मई 2017

!! हे श्यामसुंदर ! हे गिरिधर ! !!

हे श्यामसुन्दर ! हे गिरिधर !
बरस रही है कृपा हर तरफ
पर रही तेरी नज़र जहाँ भी जिधर ।

हे श्यामसुन्दर ! हे गिरिधर !
हे श्यामसुन्दर! हे गिरिधर !

फँसी हूँ मैं माया के दलदल
माया भटकाए संग लिए मुझको
न जाने कहाँ  न जाने किधर ?


हे श्यामसुन्दर! हे गिरिधर!
हे श्यामसुन्दर! हे गिरिधर!

पहुँच न पाती मैं आप तलक
जतन नही इतना मैंने किया
कि आ पाऊँ आपके उधर ।

हे श्यामसुन्दर ! हे गिरिधर !
हे श्यामसुन्दर ! हे गिरिधर !

ऐसा करों न कि एक़बार तुम
नियम-वियम सब छोड़छाड
आ जाओ आप ही मेरे इधर ।

हे श्यामसुंदर ! हे गिरिधर !
हे श्यामसुन्दर ! हे गिरिधर !