कैसे निगाहें यहाँ से हटाऊं.
जाना मेरे वश में अब नही
चाहूँ भी तो मै कैसे जाऊं.
ये आँखें है या रस का सागर
जी भर के आज पी लूं मै.
सिमट जाए जिंदगी पल भर में
वो पल इन आँखों में जी लूं मै.
ये नयन तुम्हारे जैसे बरस रही करुणा
आनंद का जैसे सागर ये
समाना चाहे ये सब खुद में पर
छोटा सा मेरा गागर ये.
इतना भी सुन्दर क्या होता है कोई
जिस अंग को देखूं नजर ठहर जाए.
तू तो ठहरा निर्मोही ओ कान्हा
तेरे आँखों डूब अब हम कहाँ जाएँ.





2 comments:
shyaam rang ranga her pal tera
वाह ... बहुत सुन्दर कविता मन को भावुक कर दिया आभार / शुभ कामनाएं
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