शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

एकबार उसके प्रेम में पड़के देखो, उधो फिर आना हमारा दर्द मिटाने.

विरह में जलती बावली हो
जबसे गया प्रियतम परदेश.
इस अगन को ठंढा कर दे
उधो क्या लाये कोई ऐसा संदेश.

कितना कठोर कान्हा हो गया
ये तो हम पहले से जाने .
भाये उसे अब मथुरा की नारी
फिर क्यों व्रज लगा वो आने.

बन कर दूत आये हो तुम
तो व्यथा हमारी तुम ही मिटाओ.
पास ही तो है देश पिया का
बस जाकर उसको लेकर आओ .

ये ज्ञान–व्यान न हमें बताओ
ये सब हमें समझ न आये.
लाये हो गर प्रीतम की पाती
तो वो बस हमें दियो दिखाए.

एक तो हम हैं गाँव की ग्वालन
और ग्वाले को ही दिल में बसाया.
फिर ये बड़ी-बड़ी बातें कैसे समझू
मन-बुद्धि में तो बस वही समाया.

ऐसे ही उसकी याद न जाए कभी
फिर क्यों आये हो उसे और बढाने.
एकबार उसके प्रेम में पड़के देखो,
उधो फिर आना हमारा दर्द मिटाने.

1 comments:

वीरेंद्र रावल ने कहा…

thanks 4 such a beautiful emotional devotional expression . I always like your way of dedication to krishna as you are supportive to him but i m supportive to radha basically.