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गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

!!जल को जितना भी मथ ले कोई, नवनीत कभी भी निकल न पाए!!


जल को जितना भी मथ ले कोई
नवनीत कभी भी निकल न पाए.
कृष्ण बिना जो जीए जीवन फिर
जीवन में आनंद भला कैसे आये.

जग में जो सुख सुलभ ही नही
ढूँढने से भी क्या मिल पायेगा.
बबूल के पेड़ पे कितना भी ढूँढे
आम तो उसपे कभी न आएगा.

बिन कृष्ण भजे भला  कैसे मिले
सुख, शांति, प्रेम और भाईचारा.
जड़ से अगर जुड़े ही नही हम तो
फिर कैसे मिले हमें कोई सहारा.

सीधी सी बात जीवन का सूत्र
कृष्ण से जोड़े अपनी टूटी कड़ी.
आह्लादित हो जाता है जीवन
मान लेते उन्हें अपना जिस घड़ी.

शनिवार, 14 अगस्त 2010

आजाद होना है तो हमें तो कृष्णा का दास बनना होगा

आजाद होना है तो हमें तो
कृष्णा का दास बनना होगा
क्योंकि वो हैं ही एक मात्र स्वतंत्र
उनसे ही हमें जुडना होगा.

उनका दास बनना
इस जगत की तरह नही
ये तो ऐसी ऊँची पदवी है
जैसे यहाँ मालिक की भी नही.

हमारे कन्हैया तो ऐसे मालिक है
जो सेवक के सेवक बन जाते हैं .
लक्ष्मी जिनके पैर दबाये वो प्रभु
कैसे पार्थसारथी भी कहलाते हैं.

जो जितनी उनकी सेवा करता
वो उतना ही सुकून पाता है.
वो प्रतिक्षण उनका गान करता
भौतिक बंधन से छूट जाता है.

ये माया ही तो बंधन है
प्रभु का सानिध्य है आजादी
प्रभु के बिना माया को पार पाना
ये तो है बस वक्त की बर्बादी.

स्वतंत्रता का मतलब है
जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होना.
इस चक्र से मुक्ति दिला सकते हैं मुकुंद
इसके लिए हमें उनका ही होना होगा.

मंगलवार, 20 अक्टूबर 2009

एक दिन तू मुझे मिल जायेगा


लोग कहते हैं कि तुझे पाना
इतना भी सहज नही है
तुझे पाने के सिवा जीने की
कोई वजह भी तो नही है

तेरी तरफ हूँ मोड़ चुकी
अब तो जीवन की हर राह
कांटें मिले या मिले पुष्प
अब तो कहाँ इसकी परवाह

सब कहते है ये बावरी है
पत्थर से बातें करती है
किस दुनिया में ये रहती है
कलयुग में कृष्णा ढूँढती है

फर्क पड़े न मन पे मेरे
तुझसे लगन लगी है पक्की
एक दिन तू मुझे मिल जायेगा
अगर श्रद्धा मेरी है सच्ची

तेरे चरणों तक मै जाउंगी
तो सुध -बुध कहाँ रह जायेगी
तेरे चरण रज में लोट-लोट
ये दासी तो वही मर जायेगी

कब आयेगा वो क्षण
पुलक उठेगा मन
मिल जायेगी मंजिल
सफल हो जायेगा जीवन

शनिवार, 3 जनवरी 2009

मिलेंगे भगवान




कहते है लोग मिलते
नही है भगवान सरलता से

कभी पुकार कर तो देखो
माँ की व्याकुलता से

ढूंढ़ कर तो देखो शराबी की
तड़प और आकुलता से

विश्वास कर के तो देखो
एक सति की दृढ़ता से

बात जोह कर तो देखो
मिलन की अधीरता से

फ़िर देखो कैसे नही
मिलते हैं भगवान
अंदर ही तो बैठे हैं वो
बस हम हैं इससे अनजान

रविवार, 14 दिसंबर 2008

आस्था





कोई माने या न माने
दिल हमारा माने
कोई पहचाने या न पहचाने
दिल हमारा पहचाने

उसके होने न होने का
कभी द्वंद न हो
उसका चिंतन कभी भी
बंद न हो

जिसके लिए हर काम को
जिसके भरोसे हर अंजाम हो
सुख की घड़ी या दुःख का आलम
होठों पे पहला उसका नाम हो

हर परिस्थिति में
हर हालात में
भोर की ताजगी
आलस की रात में

ध्यान कभी डिगे नही
सोच कभी रुके नही

न शक न सवाल
न दुविधा न संदेह


मन की यही स्थिति
तो कहलाती है आस्था