रविवार, 14 दिसंबर 2008

आस्था





कोई माने या न माने
दिल हमारा माने
कोई पहचाने या न पहचाने
दिल हमारा पहचाने

उसके होने न होने का
कभी द्वंद न हो
उसका चिंतन कभी भी
बंद न हो

जिसके लिए हर काम को
जिसके भरोसे हर अंजाम हो
सुख की घड़ी या दुःख का आलम
होठों पे पहला उसका नाम हो

हर परिस्थिति में
हर हालात में
भोर की ताजगी
आलस की रात में

ध्यान कभी डिगे नही
सोच कभी रुके नही

न शक न सवाल
न दुविधा न संदेह


मन की यही स्थिति
तो कहलाती है आस्था