जीवन में जो हैं
घड़ियाँ मिली.
बीती जा रही है
घड़ी दर घड़ी.
अभी भी सुधि नही
है सुधरने की.
अभी भी ख्वाहिशें
जस-की-तस हैं पड़ी.
रोज ही
ढलता सूरज
चुरा ले कुछ
जीवन मुझसे.
घटते जा रहे हैं
मेरे दिन
बिना बताये
बिना ही पूछे.
ये बहती हवा
देती हैं साँसें
पर हर साँस की
होती है गिनती.
एक भी साँस
ज्यादा न मिले
कितनी भी कर ले
हम चाहे विनती.
जीवन के दीये में
तेल है जितना.
उतनी ही देर तो
ये जल पायेगा.
किसी दिन
फफककर
दिल खोलके जलकर
ये बुझ जाएगा.
उस दिन फिर
कौन संग जाए?
कौन करे कम पीड़ा
कौन हरे दुःख हमारा?
ये जमा कमाया
शोहरत-दौलत.
दूर के रिश्ते या
पास का बेटा दुलारा?
जाने की पीड़ा
होगी मन में
या कुछ देकर
जाने का संतोष?
जीवन को
करेंगे शुक्रिया
या लगाते रहेंगे
तब भी दोष?
आज जरा मैं
सोचूँ उसपे.
मेरा अपना अस्तित्व
टिका है जिसपे.
हो शांति
संतुष्टि
और चैन
भरा प्रस्थान.
कोई ग्लानि,
कोई गलती
न बने
मार्ग का व्यवधान.
1 comments:
शांतिभरा प्रस्थान हो यही तो चाहते हैं हम सब, पर इसके लिये औरों के जीवन में भी शांति ही भरनी होगी अशांति नही।
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