भाद्र मास कृष्ण पक्ष की अष्टमी
रोहिणी नक्षत्र और मध्य रात्रि
जब काली अँधियारी रात में
फैला था जैसे बनके उजाला ।
भर गया वो रोशनी कारागृह में
भावनाओं में, आकांक्षाओं में
कर गया प्रदीप्त पूरे भुवन को
देवकी का जना लाल वो काला।
खुल गयी बेड़ियाँ,खुल गये द्वार
खुल गए जगत के सारे बंधन
आने की आहट सुनते ही जिनकी
निद्रा में सो गया पाप का रखवाला।
बरस-बरसकर करे मेघ अभिषेक
यमुना चरणों को बार-बार पखारे
यमुना को पारकर,गोकुल पधार कर
देवकीसुत अब बन गये हैं नंदलाला।
नंदमहल में उल्लास-ही-उल्लास है
हर ओर माखन-मिस्री सी मिठास है
कोई नही कहता कि हुआ है लाला
नंद के आनंद भयो कहे ब्रिजवाला।
जैसे नंदमहल में पधारे हो मोहन
पधारो हमारे भी मन के महल में।
दुनिया के साज औ राग बहुत हुए
अब तो मुरली सुना दे मुरलीवाला।
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