गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

!! ये मन, ये जन मुझे तुझसे दूर कर देने पर आमादा है !!


हे मेरे कन्हैया
जरा तुझसे कुछ बातें मै कर लूँ
मन कुछ उलझने
जरा तेरे सामने मै कह लूँ.

क्यों भूल जाती
कि तेरे बिना मै कुछ भी नही.
तुझसे अलग
हो सकता है सच कुछ भी नही.


फिर भी क्यों भागे मन
यहाँ-वहाँ.
तुझसे दूर जाने ये भटके
कहाँ-कहाँ.

दुनिया में ढूँढे सुख
जबकि तूने उसे यहाँ रखा ही नही.
साथी ढूँढे यहाँ
जबकि तेरे सिवा कोई साथ देता नही.

ढूँढे एक ठिकाना
जहाँ चैन रहना चाहे ये मन.
रस्ते में ही रूककर
मंजिल बनाना चाहे ये मन.

तेरी आवाज भी नही आती
ख्वाहिसों का शोर इतना ज्यादा है.
ये मन, ये जन मुझे
तुझसे दूर कर देने पर आमादा है.

अब मेरे से कुछ भी नही संभव
संभाल लो न मेरा सब.
इतने दलदल में तो फँस चुकी
अब नही तो संभालोगे फिर कब.


उलाहना नही है ये
एक प्रार्थना है खुद को बचाने के लिए.
एक संदेश है तुझे
अपने तक जल्दी बुलाने के लिए.