न हाथ में हैं जनम, न हाथ में मरण
पर हाथ में हमारे ये बीच का जीवन.
जीवन का हर क्षण प्रभु को समर्पित
फिर चाहे जब उजड़ जाए ये चमन.
जितनी भी जिन्दगी वो वरदान है
पता नही फिर कब ऐसी मिलेगी.
होठों पे हरिनाम औ भक्तों का संग
नियति ये अवसर दुबारा कब देगी.
इस अवसर को न गंवा दे हम यूं ही
खोने- पाने का हिसाब लगाते लगाते.
करोड़ों -करोड़ों जन्म बीत जाते हैं
फिर से ऐसा मानव जन्म पाते-पाते.
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