मदद को पुकारती एक निर्वस्त्र लड़की
सड़क किनारे छोड़ उसे ये चले जाते हैं.
यही वे लोग हैं जो बैठकों में बैठकर
चीर बढ़ानेवाले पे भी उँगली उठाते हैं.
नपुंसकों की सभा में खड़ी अबला नारी
आकर गिरिधारी उसका शील बचाते हैं.
आज हर चौराहे पर चीर खींचने वाले
कैसे उनकी मर्यादा पर प्रश्न उठाते हैं?
सबको है मालूम पुरुषों के समाज में
शोषित नारी को क्या स्थान देते हैं.
उलट वे तंज कसते हैं, रंज करते हैं
कितने दिलवाले उन्हें दिल में बिठाते हैं?
अबलाओं का स्वयं से जोड़ नाता जब
कृष्ण उन्हें पुनः उनका मान दिलाते हैं.
तब भी ये कायर टोलियों में आ उन पर
बहुविवाह का कुत्षित आरोप लगाते हैं.
बड़े-बड़े वैरागी प्रभु की जिस प्रेम लीला को
प्रेम से गाते औ भक्ति का प्राण बताते हैं.
प्रेम जिनकी दृष्टि में देह तक है सीमित
वे लोग उस रास लीला को भी काम बताते हैं.
क्यों भूल जाते हैं लोग ये बात अक्सर कि
रासलीला से पहले प्रभु गोवर्धन उठाते हैं.
अपनी करतूतों को जो कहते प्रेम की लीला
वे अपना चरित्र भी कहाँ सम्भाल पाते हैं?
प्रेम की परिभाषा से हैं पूर्णतः अपरिचित
वे लोग ही राधा-कृष्ण का प्रेम भुनाते हैं.
लूट-खसोट,छीना-झपटी की फितरत वाले
विरह को तो प्रेम की विफलता बताते हैं.
पढके कहीं से आधी-अधूरी सी कहानी
माँ-बाप के संबंध पे भी चटखारे लगाते हैं.
पाने को ही प्रेम समझने वाले आज के प्रेमी
उस प्रेम प्रणेता को भी दगाबाज बताते हैं.
पड़ोस में जिनकी खाली है थाली और
अपने घर में जो छप्पन भोग उड़ाते हैं.
वे क्या जाने किस भाव से, किस प्रेम से
ब्रह्माण्ड नायक व्रज में माखन चुराते हैं.
सेवक को जो अपने,इंसान भी न समझे
वे लोग कृष्ण के बारे में हमें समझाते हैं.
ये ऐसे स्वामी जो सेवक के पैरों में बैठ
पकड के चाबुक घोड़े को लगाम लगाते हैं.
ये ऐसे रणछोड़ जो बिना उठाये ही शस्त्र
अकेले ही सारे विश्व पे विजय दिलाते हैं.
कभी ले के हाथ में वंशी वे गैया चराते हैं
तो कभी रणभेरी के बीच गीता सुनाते हैं.
छोड़ सारे वैभव जिनके लिए मीरा गाती है
जिनकी गाथा सूर और रसखान सुनाते हैं.
जरा माप ले पहले कद हम अपना जब भी
उनकी लीलाओं पे बेतुके सवाल उठाते हैं.
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