आत्माराम हैं, आप्तकाम हैं
आप तो कहलाते हैं निजानंद.
कहीं से लाने की जरूरत नही
आप में ही, आपसे ही है आनंद.
आनंद भरी लीलाएं आपकी
संग में तो है दिव्य आनंद.
विरह में भी है इतना आनंद
इसके आगे फीका ब्रह्मानंद.
दृष्टि से, चरणों से , हाथों से
वितरित करे सदा ही आनंद.
आपके होने का अहसास मात्र
भर देता है जीवन में आनंद.
नख से शिख तक आनंद आनंद
चिदानंद आप , आप सच्चिदानंद.
प्रेम करे वो भी आनंदित हो जाए
सबसे बड़ा आनंद आपका प्रेमानंद.
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