बुधवार, 6 जनवरी 2016

!!कण-कण में है तू, जन-जन में हैं तू फिर मेरा मन क्यों खाली है इतना!!



खुले आसमान को अपलक मै निहारूँ 
क्योंकि ऊपरवाला कहते हैं सब तुझे.
कभी किसी दिन बन जाए किस्मत 
और तेरी एक झलक मिल जाए मुझे..

कभी कोशिश करूँ मै ह्रदय में झाँकू
कहते हैं लोग कि तू वहाँ भी है रहता.
मन को लगन है कि अब देखूं तुझे 
कहीं से मिल जाये बस मुझे तेरा पता.

कण-कण में है तू, जन-जन में हैं तू 
फिर मेरा मन क्यों खाली है इतना.
क्यों लगता मुझे तू बहुत दूर मुझसे 
इस धरती से अम्बर है दूर जितना.

जीवन में मेरे तेरी कमी है कान्हा पर 
तुझे लाने का जरिया मुझे मालूम नही.
मुझसे न कुछ आस लगा, बस आ जा 
मै न जानू क्या गलत और क्या सही.