शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

!!हमारे ह्रदय की विरह अग्नि भी, हो जायेगी थोड़ी-सी शीतल!!

 
"प्रणतकामदं पद्मजार्चितं
     धरणिमण्डनं ध्येयमापदि ।
चरणपङ्कजं शन्तमं च ते
     रमण नः स्तनेष्वर्पयाधिहन् ॥ १३॥"
 
हर कामना को करते जो पूरे 
ब्रह्मा भी पूजे वे चरण तुम्हारे 
जो भी झुका है इन चरणों में 
पा ले सब कुछ इनके सहारे.
 
धरती का तो आभूषण ही है 
बड़े प्रेम से धारण करती इन्हें.
इनका ही ध्यान करते सब
संकट से निकलना होता जिन्हें.
 
परम सुख, शांति और संतोष 
इन चरणों की छाँव में मिलता है.
जीवों का जीवन ही असल में 
बस इन चरणों में ही खिलता है.
 
हमारे ह्रदय की विरह अग्नि भी 
हो जायेगी थोड़ी-सी शीतल.
पधरा दो अपने चरणों को 
कब से राह तके हृदय व्याकुल. 

1 comments:

Kailash Sharma ने कहा…

उन्हीं के चरणों का सहारा है...जय श्री कृष्ण