शनिवार, 14 नवंबर 2015

!!नीले केशों के बादल के बीच से, उदित होता आपका मुख कमल!!

 
"दिनपरिक्षये नीलकुन्तलै-
     र्वनरुहाननं बिभ्रदावृतम् ।
घनरजस्वलं दर्शयन्मुहु-
     र्मनसि नः स्मरं वीर यच्छसि ॥ १२॥"
दिन भर की प्रतीक्षा के बाद 

जब सांझ की बेला आती है.

वन से व्रज की राहों पर ही 

ये आँखें हमारी टिक जाती है.

 

गौवों के पैरों से उड़ती हुई धूल 

और ग्वालबालों की वह कोलाहल   

दे जाती आपके आने का संदेश 

नाच उठता हमारा ह्रदय विकल.

 

नीले केशों के बादल के बीच से 

उदित होता आपका मुख कमल.

धूल से धवल हो चूका था वह 

सुबह को देखा था जिसे श्यामल.


हे वीर आपका यह दर्शन तो  

ह्रदय में हमारे हलचल मचाये.

मन में है जो मिलन की कामना 

वह अब और भी तीव्र हो जाए.

1 comments:

Unknown ने कहा…

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