सोमवार, 2 नवंबर 2015

!!व्रज का रूप व्रज की लीलायें, ह्रदय से हमारे कभी न जाए !!


"वरं देव मोक्षं न मोक्षावधिं वा
न चन्यं वृणे ‘हं वरेषाद् अपीह
इदं ते वपुर् नाथ गोपाल-बालं
सदा मे मनस्य् आविरास्तां किम् अन्यैः ॥ ४॥"


क्या दे नही सकते आप प्रभु
पर देना नही कभी मुझे.
क्या लेना ऐसे वरों को भला
लेकर जिन्हें भूल जाऊं तुझे.

मुक्ति न देना, न ही देना धाम
दुनिया से भला क्या मुझे काम.
ह्रदय में बसे ये भोला मुखरा
माखनचोर है जिसका नाम.

व्रज का ये बाल गोपाल रूप
यहाँ की ये नटखट लीलायें
इतनी दया कर दो प्रभु कि
मन से छवि ये कभी न जाए.

इसके सिवा कुछ याद न आये
बस माखन चुरैया ही मन भाये.
मेरे इस मन के उपवन से प्रभु
दामोदर महीना कभी न जाए.