"न खलु गोपिकानन्दनो भवा-
नखिलदेहिनामन्तरात्मदृक् ।
विखनसार्थितो विश्वगुप्तये
सख उदेयिवान्सात्वतां कुले ॥ ४॥"
सिर्फ यशोदा के लाल नही तुम
केवल व्रज के गोपाल नही तुम
तुम तो हो इस सृष्टि के स्वामी
हर ह्रदय में बैठे प्रभु अन्तर्यामी.
ब्रह्माजी की प्रार्थना को सुनकर
जैसे आ गये तुम धरा धाम पर.
वैसे ही हमारी भी विनती सुन
दर्शन दे कृपा कर दो हम पर.
प्रकट हो जाते क्षण भर में जैसे
जब भक्त पुकारे व्याकुल होकर.
उस भक्त वत्सलता की कुछ बूँदें
छिड़क दो जरा हमारे भी ऊपर.
ब्रह्माण्ड की रक्षा के लिए ही तो
सात्वत कुल में अवतरित हुए हो.
हमारे प्राणों की रक्षा भी तो करो
क्यों अब तक नेत्रों से छुपे हुए हो.
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