गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

!! ओझल हुई अपनी सांवरी सूरत को प्रभु, दासियों पर दया कर प्रकट कर दो !!

 
"विषजलाप्ययाद्व्यालराक्षसा-
     द्वर्षमारुताद्वैद्युतानलात् ।
वृषमयात्मजाद्विश्वतोभया-
     दृषभ ते वयं रक्षिता मुहुः ॥ ३॥"
 
कालिया के विष से बचाया 
फिर विरह विष से क्यों तड़पा रहे हो.
क्यों बचाया इंद्र की वर्षा से हमें 
जब अपने वियोग में आज जला रहे हो.
 

अघासुर बना लेता हमें आहार या 
तृणावर्त ही अपनी आंधी में उड़ा ले जाता.
फिर तुम्हारे दर्शन बिना जीने का 
यह दुसह्य पल तो नही जीवन में आता.
 
अरिष्टासुर हो या व्योमासुर 
किसी की आंच न हम पर आने दी.
आज उसी तरह अपने दर्शन से 
आयी है बारी फिर हमें बचाने की.
 
अग्नि से जैसे बचाया था स्वामी 
इस विरह की ताप को भी शातल कर दो.
ओझल हुई अपनी सांवरी सूरत को 
प्रभु दासियों पर दया कर प्रकट कर दो.
 
अब तक जब बचाया हमें फिर 
आज इस तरह क्यों मार रहे हो.
आपके बिना हमारा अस्तित्व नही 
यह तो बखूबी आप जान रहे हो.