गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

!! व्रज रज में खेले सृष्टि का स्वामी, माखन चुराए और पकड़ा भी जाए !!


"इतीदृक् स्व-लीलाभिर् आनन्द-कुण्डे
स्व-घोषं निमज्जन्तम् आख्यापयन्तम्
तदीयेषित-ज्ञेषु भक्तैर् जितत्वं
पुनः प्रेमतस् तं शतावृत्ति वन्दे ॥ ३॥"
बाल लीलाओं के आनंद सागर में
नित खाए हिलोरे गोकुलवासी.
मिल गया उन्हें जीवन का ध्येय
क्यों जाए फिर वे तीरथ काशी.

ज्ञानिओं के लिए हैं जो परमात्मा
यहाँ तो हैं नन्द-यशोदा का लाला
ढूंढें योगी जिन्हें हिमालय पे जाकर
बनके बैठा वो गोकुल का ग्वाला.


व्रज रज में खेले सृष्टि का स्वामी
माखन चुराए और पकड़ा भी जाए.
परमब्रह्म परमेशवर स्वराट देखो
कैसे मैया के डर से आँसू बहाए .

ये तो व्रज के प्रेमी भक्त का पाश
जो भुला दे भगवान को भगवत्ता.
कैसे नचाये उन्हें इशारे पे अपने
जिनकी मर्जी बिना न हिलता पत्ता.


अजित को जीतने की ये कला
व्रजवासियों को खूब आती है.
निश्छल निःस्वार्थ प्रेम की डोर
परम स्वतंत्र को भी बाँध जाती है.

ऐश्वर्य, ज्ञान, भय, आदर से नही
निर्मल प्रेम से बस प्रभु को काम.
ऐसे भक्त वत्सल भगवान् को मैं
करूँ बारम्बार प्रणाम, बारम्बार प्रणाम.