"कुबेरात्मजौ बद्ध-मूर्त्यैव यद्वत्
त्वया मोचितौ भक्ति-भाजौ कृतौ च
तथा प्रेम-भक्तिं स्वकां मे प्रयच्छ
न मोक्षे ग्रहो मे ‘स्ति दामोदरेह ॥ ७॥"
हे दामोदर हे कृपानिधान
करुणा के सागर हे भगवान.
हमें भी दे दें भक्ति का दान
अब कर दें दया हे दयानिधान.
कुबेर के पुत्रों को शाप से तारा
वर्षों के बंधन से पल में उबारा.
भक्ति से जैसे भर दिया उनको
ऐसे ही भर दो जीवन भी हमारा.
प्रेमाभक्ति प्रदान कर स्वामी
अपने चरणों में हमें स्वीकार करें.
सार्थकता दे दें जीवन को हमारे
अब तक तो रहे हम बेकार पड़े.
कोई इच्छा नही कोई कामना नही
एक ही आग्रह है आपसे दामोदर.
हमारे ह्रदय में भी जगा दे वो प्रेम
जिससे बंध जाता है आपका उदर.
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