"प्रणतदेहिनां पापकर्शनं
तृणचरानुगं श्रीनिकेतनम् ।
फणिफणार्पितं ते पदाम्बुजं
कृणु कुचेषु नः कृन्धि हृच्छयम् ॥ ७॥"
इन चरणों की महिमा है भारी
शरणागत के सारे पाप जला दे.
जिस मन में बस जाए ये चरण
उस मन के हर संताप मिटा दे.
ह्रदय में दिया स्थान रमा को पर
चाहे वो तो इन चरणों में रहना.
ऐसे दिव्य धाम चरणों को लिए
फिरते तुम गौवों के पीछे कान्हा.
कालिया के सिर जब थिरके चरण
उद्धार पा गया वह सर्प भयंकर.
जिन्होंने ने भी पाया संग इनका
हो गया वे पावन चरणों को छूकर.
इन पतितपावन चरणों को प्रभु
हमारे ह्रदय पे भी रख दो इकबार.
मन की सारी व्यथा मिट जायेगी
इन्ही चरणों ही है हमारा भी संसार.
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