बुधवार, 4 नवंबर 2015

!!भूलकर सारे पाप-पुण्य हमारे, अब प्रकट भी हो जाओ प्यारे !!

"व्रजजनार्तिहन्वीर योषितां
     निजजनस्मयध्वंसनस्मित ।
भज सखे भवत्किङ्करीः स्म नो
     जलरुहाननं चारु दर्शय ॥ ६॥"

 

हे व्रज के पालनहार मुरारी
हे नाग नथैया गिरिवरधारी.
सबके कष्टों को दूर किया
दूर करो अब व्यथा हमारी.

मोहन तेरी मनोहर मुस्कान
भक्तों के मिथ्या गर्व मिटाए .
पाकर तुझे खोया है हमने
तुम्ही बताओं कैसे तुझे पाए.

गलती हमारी क्षमा कर दो
चरणों में अपनी शरण दे दो.
करके स्वीकार अपनी दासी
जीवन हमारा सफल कर दो.

भूलकर सारे पाप-पुण्य हमारे
अब तो प्यारे प्रकट भी हो जाओ.
हम निर्बल अबलाओं को हे प्रिय
अब और विरह में न तड़पाओ.