"इदं ते मुखाम्भोजम् अत्यन्त-नीलैर्
वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश् च गोप्या
मुहुश् चुम्बितं बिम्ब-रक्ताधरं मे
मनस्य् आविरास्ताम् अलं लक्ष-लाभैः ॥ ५॥ "
वृतं कुन्तलैः स्निग्ध-रक्तैश् च गोप्या
मुहुश् चुम्बितं बिम्ब-रक्ताधरं मे
मनस्य् आविरास्ताम् अलं लक्ष-लाभैः ॥ ५॥ "
काले घुँघराले बालों से घिरी
सुंदर सांवली मोहक छवि
तस्वीर बसे ये मन में ऐसे
कि फिर उतरे नही ये कभी.
ये रक्तिम बिम्बफल से अधर
ये लालिमा लिए कोमल कपोल
बाल रूप के दर्शन के आगे
किसी मुक्ति का कहाँ है मोल.
बारम्बार मैया चूम रही मुख
वात्सल्य का उनके ओर नही.
ये प्रेम हैमैया और लल्ला का
पा सके जिसका कोई छोड़ नही.
आपके मुखमंडल का सुंदर दृश्य
ह्रदय में हमारे सदा विराजित रहे.
बाहर के सुख से क्या लेना हमें
ह्रदय में ही आनंद का सागर बहे.
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