"प्रहसितं प्रिय प्रेमवीक्षणं
विहरणं च ते ध्यानमङ्गलम् ।
रहसि संविदो या हृदिस्पृशः
कुहक नो मनः क्षोभयन्ति हि ॥ १०॥"
आपका प्रेम भरा चितवन प्रभु
ध्यान में भी मंगल है करता.
आपकी निश्छल मनोहर हँसी से
ह्रदय का हर संताप है मिटता.
आपके साथ जो बिताये थे क्षण
चित्त से हमारे वो निकलता नही .
वे प्रेमभरी लीलायें गुप्त वार्तायें
मानस पटल से वो हटता नही.
आपके सानिध्य का सुखद स्मरण
हमारे जीवन का सबसे बड़ा धन है.
यही तो है जीने का कारण हमारा
देह और प्राण के बीच का बंधन है.
लेकिन हे छलिया प्रियतम हमारे
ये यादें हमें विकल बड़ा करती हैं.
दर्शन से अपनी,मिटा दो विकलता
गोपियाँ आपके चरणों में पड़ती हैं.
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