हे पतितपावन, हे कृष्ण मुरारी
हे गजेन्द्र रक्षक ,हे भवभयहारी.
गजेन्द्र के संग ग्राह पर भी बरसी
हे करुनानिधान करुणा तुम्हारी.
महिमा और गुणगान से भरी हैं
वेद, पुराण और उपनिषद सारी.
पर मन में मेरे न भाव, न प्रेम
पाषाण सी हालत ह्रदय की हमारी.
हे पुरुषोत्तम करो थोड़ी करुणा
सोये पड़े प्रेम को जगा दो जरा.
मिट जाए ये मोह ये बंधन जग के
मन हो बस तेरी भक्ति से भरा.
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