आपकी अंश हूँ तो
कभी तो रही होंगी
आपके साथ .
कभी तो रही होंगी
मेरी छोटी उँगलियाँ
आपके हाथ .
आपके असीम प्यार का
अहसास नही होगा
शायद मुझे तब .
है उसी प्यार की याद
जो जीने नही देती
शायद मुझे अब.
मेरी इन आँखों से
आप मुझे
दिखते नही.
पर लगता है हमेशा
जैसे आप हैं
यही कही.
आकर थाम लो न फिर प्रभु
अपने हाथों में मेरी वो उंगली.
अब तक नही थामा किसी ने
जाने कितनी बार मै फिसली.
2 comments:
सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (28-01-2015) को गणतंत्र दिवस पर मोदी की छाप, चर्चा मंच 1872 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत भावपूर्ण रचना...बहुत सुन्दर
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