यमुना तट पर बैठे कान्हा
वंशी मधुर बजा रहे हैं.
लगता जैसे धुन से अपनी
सबको पास बुला रहे हैं.
पहुँच गए सब गोपी-ग्वाले
और सारे भक्तजन उनके
जिनको थी उनसे प्रीति
ह्रदय में बसते हैं वो जिनके
हंसी-ठिठोली और खेल-कूद
सब कर रहे हैं प्रभु संग वास.
पल-पल बढ़ता जाता आनंद
कोई नही इस संग में उदास.
ऐसे संग की मुझे भी है आस
योग्यता नही कोई मेरे पास.
जानूं मै कि ऐसी इच्छा से मै
उड़ा रही हूँ भक्ति का उपहास.
ऐसे नही तो सपने में सही
मधुर रूप के दर्शन करो दो.
दर्शन नही तो कम-से-कम
वंशी की अपनी धुन ही सुना दो.
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें