आज घर की बहुत
याद है आ रही.
क्योंकि कहीं भी अब
सुकून मिलता नही.
याद आ रहा है
पिता का बुलावा.
उनकी सच्चाई और
जग का छलावा.
अनसुनी की उनकी
कितनी ही पुकार.
क्योंकिबसा रही थी
मै अपना संसार.
आज महसूस हो रहा
कितने है वो मेरे अपने.
कितना पराया है ये जग
कितने पराये हैं मेरे सपने.
मैंने मान ली है गलती
अब आप भी मान जाओ.
दिल में ही तो बैठे हो
जरा आवाज तो लगाओ.
याद है आ रही.
क्योंकि कहीं भी अब
सुकून मिलता नही.
याद आ रहा है
पिता का बुलावा.
उनकी सच्चाई और
जग का छलावा.
अनसुनी की उनकी
कितनी ही पुकार.
क्योंकिबसा रही थी
मै अपना संसार.
आज महसूस हो रहा
कितने है वो मेरे अपने.
कितना पराया है ये जग
कितने पराये हैं मेरे सपने.
मैंने मान ली है गलती
अब आप भी मान जाओ.
दिल में ही तो बैठे हो
जरा आवाज तो लगाओ.
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