जैसे मुट्ठी से रेत
देखते-देखते फिसल जाती है
ऐसे ही जिंदगी हमारी
देखते-देखते गुजर जाती है
जिस लम्हा में वो
वो लम्हा जिया
वरना हमने
जाने क्या किया?
जहां गई ये आँखें
वहाँ थी क्या
उसकी श्यामली सूरत
नही तो फिर न थी
देखने न ही
इन आँखों की जरूरत.
उसके सिवा
किसके लिए
इस जीवन में कुछ करे
अगर न करे
उसके लिए
सोने की थैली में कंकड़ भरे
पता नही कौन-सा
आखिरी पल
कौन जाने आएगा
कि नही अपना कल
जी ले उसके लिए हर पल
जीना फिर हो जाएगा सफल.
2 comments:
सच बात है..
जय श्री कृष्ण...
कुँवर जी,
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