सुदर्शन की भांति पहिया उठा
दौड़ पड़े है भीष्म की ओर
देख माधव की ऐसी अनुपम छवि
आज हो गए भीष्म आनंदविभोर
छोड़ा तरकस,फेंक दिया धनुष
उतरे रथ से ऐसे
जन्म-जन्म के प्यासे को
मिल गया हो जल जैसे
अपलक निहारते प्रभु को
बैठे हैं वीरासन में.
देखो शरणागत खुद आ गए
लेने मुझे शरण में.
युद्धभूमि की इस निर्ममता में
वत्सलता की ये शीतल छाया
भक्त के प्रेम में पड़कर आज
उसने तोड़ प्रतिज्ञा अस्त्र उठाया
पकड़ के पाँव भगवन के
अर्जुन कर रहे कातर याचना
मत उठाओ अस्त्र केशव
तेरी प्रतिज्ञा हो जायेगी वंचना
अपने यश की खातिर
एक भक्त की
प्रतिज्ञा कैसे तोड़ दूँ
भक्त के प्रेम में
प्रतिज्ञा क्या पार्थ
मै तो कुछ भी छोड़ दूँ
2 comments:
यह दृश्य जब भी देखूँ, मन भर आता है..
लीला राधा-श्याम की,श्याम सके क्या जान
जो लीला को जान ले श्याम रहे ना श्याम ||
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