सोमवार, 4 जून 2012

भक्त के प्रेम में प्रतिज्ञा क्या पार्थ मै तो कुछ भी छोडूं

सुदर्शन की भांति पहिया उठा
दौड़ पड़े है भीष्म की ओर
देख माधव की ऐसी अनुपम छवि
आज हो गए भीष्म आनंदविभोर

छोड़ा तरकस,फेंक दिया धनुष
उतरे रथ से ऐसे
जन्म-जन्म के प्यासे को
मिल गया हो जल जैसे

अपलक निहारते प्रभु को
बैठे हैं वीरासन में.
देखो शरणागत खुद आ गए
लेने मुझे शरण में.

युद्धभूमि की इस निर्ममता में
वत्सलता की ये शीतल छाया
भक्त के प्रेम में पड़कर आज
उसने तोड़ प्रतिज्ञा अस्त्र उठाया

पकड़ के पाँव भगवन के
अर्जुन कर रहे कातर याचना
मत उठाओ अस्त्र केशव
तेरी प्रतिज्ञा हो जायेगी वंचना

अपने यश की खातिर
एक भक्त की
प्रतिज्ञा कैसे तोड़ दूँ

भक्त के प्रेम में
प्रतिज्ञा क्या पार्थ
मै तो कुछ भी छोड़ दूँ

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यह दृश्य जब भी देखूँ, मन भर आता है..

shyam gupta ने कहा…

लीला राधा-श्याम की,श्याम सके क्या जान
जो लीला को जान ले श्याम रहे ना श्याम ||