दही मथानी हाथ लिए
लल्ला के गुण नित गाय
सोच-सोच कर उसकी बातें
यशोदा के हिय हरसाए .
कैसे लल्ला माखन खाए
चलते-चलते कैसे गिर जाए.
अपनी ही छवि देख कैसे
उसको अपना मित्र बनाए.
सुन्दर-सा सुकुमार बदन
पीत वस्त्र में कैसे सोहे
छोटी -सी पगड़ी है उसकी
उसका मोरपंख मन मोहे.
दो-दो दाँत हैं ऊपर-नीचे
और तोतली-सी मीठी वाणी
जब भी बोले कर ले कलेवा
कैसे करता वो आनाकानी
सोच-सोच में लगी है मैया
तब तक आ गया उसका लल्ला .
देखो जग का पालनहार कैसे
पकड़ के खड़ा है माँ का पल्ला
धन्य-धन्य भाग्य तेरे यदुरानी
तुझको मेरा शत-शत नमन
अविनाशी खेले तेरे आँगन
तेरे लिए करे वो क्रंदन
जब तू चाहे उन्हें गोद बिठाए
और जब चाहे ले ले चुम्बन .
3 comments:
यदुरानी तू धन्य है, धन्य हुआ गोपाल ।
दही-मथानी से रही, माखन प्रेम निकाल ।
माखन प्रेम निकाल, खाय के गया सकाले ।
ग्वालिन खड़ी निढाल, श्याम माखन जब खाले ।
जकड कृष्ण को लाय, पड़े दो दही मथानी ।
बस नितम्ब सहलाय, हँसे गोपी यदुरानी ।।
बहुत ही भावपूर्ण भक्ति रचना पढ़कर मन कृष्ण मय होगया इतनी सुंदर रचनाओं के लिए बधाईयाँ
अदितिमिश्रा 222@जी
मेल.कॉम
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
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