शुक्रवार, 18 मई 2012

धन्य-धन्य भाग्य तेरे यदुरानी ,तुझको मेरा शत-शत नमन




दही मथानी हाथ लिए
लल्ला के गुण नित गाय
सोच-सोच कर उसकी बातें
यशोदा  के हिय हरसाए .

कैसे लल्ला माखन खाए
चलते-चलते कैसे गिर जाए.
अपनी ही छवि देख कैसे
उसको अपना मित्र बनाए.

सुन्दर-सा सुकुमार बदन
पीत वस्त्र में कैसे सोहे
छोटी -सी पगड़ी है उसकी
उसका मोरपंख मन मोहे.

दो-दो दाँत हैं ऊपर-नीचे
और तोतली-सी मीठी वाणी
जब भी बोले कर ले कलेवा
कैसे करता वो आनाकानी

सोच-सोच में लगी है मैया
तब तक आ गया उसका लल्ला .
देखो जग का पालनहार कैसे
पकड़ के खड़ा है माँ का पल्ला

धन्य-धन्य भाग्य तेरे यदुरानी
तुझको मेरा शत-शत नमन
अविनाशी खेले  तेरे आँगन
तेरे लिए करे  वो    क्रंदन
जब तू चाहे उन्हें गोद बिठाए
और जब चाहे ले ले चुम्बन .

3 comments:

रविकर ने कहा…

यदुरानी तू धन्य है, धन्य हुआ गोपाल ।

दही-मथानी से रही, माखन प्रेम निकाल ।

माखन प्रेम निकाल, खाय के गया सकाले ।

ग्वालिन खड़ी निढाल, श्याम माखन जब खाले ।

जकड कृष्ण को लाय, पड़े दो दही मथानी ।

बस नितम्ब सहलाय, हँसे गोपी यदुरानी ।।

Aditi Poonam ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण भक्ति रचना पढ़कर मन कृष्ण मय होगया इतनी सुंदर रचनाओं के लिए बधाईयाँ
अदितिमिश्रा 222@जी
मेल.कॉम

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!