न ज्ञान है न भक्ति
न ही जानू कोई रीत
न सुर है न ताल है
न ही है कोई गीत
वासनाओं से भरा है मन
न है यहाँ प्रेम संगीत
मन को तो जीत न पाई
और तुम तो ठहरे अजीत
तुझको तो भूल ही गई
बनाए यहाँ इतने मीत
लेकिन जब देखूं सूरत वो
होठों पे जिसके लगा नवनीत
गोप वेश ,अधर पे वंशी
श्याम वर्ण और वस्त्र पीत
लगे काश ये छवि कभी
लेती मुझे भी तो जीत
मेरे भावशून्य ह्रदय में भी
जग जाती इनके लिए प्रीत
2 comments:
कृष्ण का स्पर्श प्रीत प्रवाह बहा देता है।
bahut khubsurat...
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