अँखियों के पोरों पे
अटकी हैं दो बूँदें
बहना चाहे पर
बह न पाए
अँखियों के अंदर
भी न जाए
प्रभु प्रेम में
गिरना चाहे
मन की इच्छाएँ
आड़े आये
इच्छाओं के तपन में
कही ये बूँदें
सूख न जाए
मुश्किल से जो
छलका है ये
इसे तो
प्रभु चरण चढाये
न जाने फिर
कब कोई बूँद
भक्ति-विहीन
ह्रदय छलकाए
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