बुधवार, 9 नवंबर 2011

किशोरी के घर में, उनके वृन्दावन में.

किशोरी के घर में
उनके वृन्दावन में.
काश मै खो जाती
जाती तो फिर न आती.

मेरे इस जीवन में
मेरे इस मन में.
किशोरी जो समा जाती
मुझे अपना बना जाती.

मन मेरा निर्मल नही
जो किशोरी इसमें समाये.
न भक्ति है न भाव फिर
कैसे वृन्दावन मुझे बुलाये.

इस जन्म नही तो
किसी और जन्म में
कुछ भक्ति,कुछ भाव
फूटे मेरे भी मन में.