किशोरी के घर में
उनके वृन्दावन में.
काश मै खो जाती
जाती तो फिर न आती.
मेरे इस जीवन में
मेरे इस मन में.
किशोरी जो समा जाती
मुझे अपना बना जाती.
मन मेरा निर्मल नही
जो किशोरी इसमें समाये.
न भक्ति है न भाव फिर
कैसे वृन्दावन मुझे बुलाये.
इस जन्म नही तो
किसी और जन्म में
कुछ भक्ति,कुछ भाव
फूटे मेरे भी मन में.
1 comments:
बहुत ही सुन्दर।
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