मरनेवाले से पूछो मोल जीवन का
सोचे-काश कुछ और पल जी लेता.
देकर भी दुनिया भर की दौलत
कोई जिंदगी के कुछ क्षण दे देता.
जान न पाते कीमत जिंदगी की
जाने इसे कहाँ-कहाँ है लुटाते.
दिन भर फिजूल के कामों में
और रात को सोने में हैं गवांते.
इसकी बुराई तो उसकी अच्छाई
इससे दोस्ती तो उससे लड़ाई.
ऐसे ही करके है हमने उड़ाई
जन्मों के मानव देह की कमाई.
एक पल को सोचे ये पल है अंतिम
होने वाली है अब यहाँ से विदाई.
मौत के आहट को सुनने की कोशिश
करने न देगी जिंदगी से बेवफाई.
2 comments:
सब आखिरी समय में ही याद आता है, मानवीय प्रवृत्ति है।
bahut achhi rachna,badhai!
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