सोमवार, 26 सितंबर 2011

चली है किशोरी पनघट की ओर, वंशी बजाके रोके नंदकिशोर.


चली है किशोरी
पनघट की ओर
वंशी बजाके
रोके नंदकिशोर.

दिशाएं,हवाएं
टकटकी है लगाए.
निहारे है इनको
सब काज छोड़.

झुक गई हैं लताएं
देखो फूल बरसाए
लगी है जैसे होड़
जाए चरणों की ओर.

एक कदम बढ़ाया
और एक लिया रोक.
कैसे जाए राधा जब
दिया कान्हा ने टोक.

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर मधुर संवाद।

सारिका मुकेश ने कहा…

जय श्री कृष्ण!!
बहुत सुंदर भावाव्यक्ति!
बदल जीने का ढंग गया, जो उसके रंग में रंग गया...
जो वास्तविक है सब कुछ कृष्णमय ही तो है, शेष सभी मिथ्या है; माया है....
तभी तो मीरा कहती है-
पायो जी मैंने रामरतन धन पायो
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरू....
सच, आपका ब्लॉग देख मन प्रसन्न हो गया!
बहुत-बहुत साधुवाद!!
सारिका मुकेश