बुधवार, 4 मई 2011

भक्ति बुढापे की चीज नही होती,ऐसी सोच हमारी कृपणता है.

जब तक जीवन स्वस्थ है

तभी न हम क्यूँ दे दे उसको.
बुढ़ापे और बीमारी से जूझते
क्या हम भज पायेंगे उसको.

युवावस्था का ताजा फूल
कर दे हम आज नाम उसके.
बुढ़ापे का मुरझाया फूल
क्या आएगा काम उसके.

ढलती उम्र में करे हम भक्ति
तो क्या हम उसको देंगे .
हर दर्द पे एक आह होगी
हर आह पे उसी से लेंगे.

जिसने हमें दिया है सब कुछ
उसी को देने में क्या हर्ज है.
और देना ही है तो दे सर्वोत्तम
ये हर एक जीवन का फर्ज है.

भक्ति का मतलब प्रेम पिता से
फिर क्यूँ बुढ़ापे का हो इंतजार.
सबसे रिश्ते निभा रहे हैं अभी
और उससे करेंगे बुढ़ापे में प्यार !

जिसने हमें माँ से भी पहले से पाला
उसके लिए हमारा कोई फर्ज नही है?
जिसने दी हमें सारी सुविधाएँ
उसे बस बेवश बुढ़ापा देना सही है?

भक्ति बुढापे की चीज नही होती
ऐसी सोच हमारी कृपणता है.
किसी का समान बेकार कर लौटाना
ये न तो भक्ति न ही मानवता है.

5 comments:

Prabhat Sharma ने कहा…

extreme appreciation !
"First and Last Thought : Devotion has nothing to do with age.
"

Creative and Sincere Creation reflecting the concept of BHAKTI in right mean.

Regards,
P.P DAS

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (5-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/

Anupama Tripathi ने कहा…

सुंदर सोच से प्रारंभ हुई सुबह ...
बहुत अच्छा लिखा है ...!!
जय श्री राधा-कृष्ण ..!!

वाणी गीत ने कहा…

सत्य वचन !

***Punam*** ने कहा…

sahi kaha aapne..
samay rahte hi prabhu ka simran karna chahiye,bacha-khuch samay ishwar ko kabhi n dena chahiye !