विरह वेदना ने इसे बड़ा-ही सताया.
ये श्याम बादल जो नभ में छाया
उसी ने इस बावली को है भरमाया.
इसे लगा कि इसका मोहन आया
दौडी ये उसको गले से लगाने.
पर था वो कहाँ जो इसको मिलता
प्रियतम का प्रेम लगा इसको सताने.
प्राण भी है कि नही तन में इसके
जाके जरा कोई पास में तो देखे.
कृष्ण की प्रिया धरा पर पडी है
कैसे अजब है ये विधि के भी लेखे.
मूर्छा अगर टूटी फिर क्या होगा
कहाँ से हम लायेंगे इसका मोहन.
भटकेगी वन-वन बनके ये विरहनी
कौन करेगा उस विरह का दोहन .
मूर्छित ही रहने दो कुछ देर इसको
वैसे भी रातों को ये सोती नही.
थम जायेंगे कुछ देर आँसू भी इसके
कोई पल ऐसा जब ये रोती नही.
कान्हा का प्रेम ये कैसा कठोर
सुकुमारी राधा को चोट लगाए .
कैसी कहानी है प्रेम की उसकी
जितना जो चाहे उसे उतना जलाए.
1 comments:
radha ki pidaa shabd shabd me hai...
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