मोर मुकुट से खुद को सजाऊं.
मधुवन में जाके गैया चराऊ
राधा से आज कान्हा बन जाऊं.
लौटा दे मेरी मुरली राधे
इसके बिना मै कैसे रहूँ.
पूछे जो मैया कहाँ गयी मुरली
तू ही बता फिर मै क्या कहूँ.
बजाने दे मुरली मुझको कान्हा
देखूं आखिर क्या है इसमें बात.
धुन इसकी सुन भागी हम आती
देखे नही हम क्यूँ दिन और रात.
सताए न ये मुरली फिर से तुझे
लो मैंने ये शपथ आज लिए.
बजायी न कान्हा ने मुरली अगर
फिर राधे भी बोलो कैसे जिए.
सह लूंगी मै न सुनने पीड़ा पर
साथ तेरे मुझसे ये सही न जाए.
होठों से लगाए,कमर में लटकाए
लिए फिरे तू जहाँ-जहाँ जाए.
जब चाहूँ बुला लू बजाके के तुमको
इसलिए मै सदा रखता इसे साथ.
तुझसे मिलने का जरिया है मुरली
और नही है प्रिय कोई है बात.
मै भी बड़ी नादान हूँ कान्हा
छोटी-सी बात भी समझ न आये.
ये लो मैंने लौटा दी मुरली
मेरे लिए ही तो तू मुरली बजाये.
1 comments:
भक्ति रस मे रची बसी रचना मन को बहुत भाती है…………………नमन है।
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