गुरुवार, 13 जनवरी 2011

बजा न तू मुरली फिर से कन्हैया, है काम मेरे लाखों पड़े

बजा न तू मुरली फिर से कन्हैया
है काम मेरे लाखों पड़े
सुन ली जो तेरी मुरली मैंने
रह जायेंगे वो धरे-के-धरे

सूरत ही तेरी कम है क्या
उसका नशा ही संभलता नही.
ऐसे बसी है नैनो में ये सूरत
कुछ और अब इसमे ठहरता नही.

उस दिन जो तेरी मुस्कान देखी
याद कर उसको हँसती रहती.
सामने थी गैया लगे मोहे कन्हैया
बातें मै उससे करने लगती.

कैसे बताऊँ कि कैसा है तू
बड़ी बेरहम हैं तेरी अदाएं
छीन ली हैं इसने सुध-बुध मेरी
हालत ऐसी कि किसको बताएं.

तिस पे अगर तूने जो मुरली बजाई
भूल जाउंगी कि है चूल्हा जलाई.
चूल्हा भी रह जाये,चौका भी रह जाए
होगी फिर मेरी बड़ी जगहँसाई.

देंगे फिर ताने मेरे घरवाले
मार भी पड़े कही मेरी मैया.
दूंगी तुझे मटकी भर माखन
बजा न तू मुरली फिर से कन्हैया.