कृष्णा रे ! कृष्णा रे !
कहाँ है तू मनमोहना.
तेरी याद बड़ी आ रही है
कहाँ है तू मनमोहना.
ये रिश्तों में उलझी मै
और माया में फँसा मेरा मन.
सुलझा ले मुझे,बचा ले मुझे
संवर जाए मेरा जीवन.
यहाँ पग-पग पे तृष्णा खड़ी
मन भी मांगे मुरादे बड़ी.
औरों की ख्वाहिशें भी मुझसे जुडी
कैसे करूँ सबकी तमन्ना पूरी.
ये कैसा खेल है माया का
ये कैसी चाल ठगनी ने चली.
पर चाल भी चले न,खेल भी रहे न
तूने गर मेरी डोर पकड़ ली.
इन झूठे रिश्तों से मुझको छुडा ले
कान्हा अब तो मुझे अपना ले.
दुनिया के रिश्ते है बड़े खोखले
कैसे कोई ये रिश्ते निभा ले.
बुद्धि पे मेरे पर्दा पड़ा
देख रहा तू यूँ क्यों खड़ा.
तेरे लिए कुछ मुश्किल कहाँ
डाल दे नजरे मुझ पे जरा.
1 comments:
श्री राधे मेरी बुद्धि पर भी पर्दा पड़ा है
बहुत सुंदर रचना
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