क्यूं भेजा मुझे मथुरा मैया
कोई कहे न मोहे कन्हैया.
ये ठाट-बाट भाये न मुझको
लौटा दे मेरी लटुकी और गैया .
न यहाँ यमुना, न यहाँ मधुवन
न ही व्रजवालों-सा चितवन.
सब कहे हैं ईश्वर मुझको
कोई सुने न मेरा क्रंदन.
सुबह कलेवा,दिन का भोजन
व्रज का वो मिस्री और माखन.
जब मथुरा सारी करे शयन
तब याद कर भीगे मेरे नयन .
मुरली बजाना भूल ही गया
राग तो सारे व्रज में ही छूटे.
रूठ गयी मुरली मुझसे मैया
तिस पर तुम सब भी हो रूठे.
क्यूं भेजा मुझे मथुरा मैया..........
4 comments:
krishnmay blog ... gokul me aane jaisa laga
krishn to makhan churate the , kuch pal laga aapke saras bhaw chura lun ...
वाह ...
बहुत सुन्दर कविता
मन को भावुक कर दिया
आभार / शुभ कामनाएं
इस शिकायत पर माता कैसे संभाल पायी होंगी खुद को ...
भाव झर झर बह रहे हैं , जैसे सामने ही कन्यैया रूठा खड़ा है ...
बहुत सुन्दर !
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