कब से तेरी रह तक रही.
आँसू नही है ये इंतज़ार
जो आँखों से बह रही.
मटकी लेकर यमुना तट पे
जाने कब तक खड़ी रही .
न मटकी फूटी न तू ही आया
आँखों से फिर वही झड़ी बही.
मुरली बजाने में है परेशानी तो
बिन मुरली के ही आ जा.
कब से बैठी है राधा तेरी मान कर
उसे मनाने तो आ जा.
मुझे कहते हैं यहाँ सब
तू न आएगा कभी अब
एकबार बस उनकी बात
को झूठलाने तो आ जा
बुद्धि तो मेरी अब साथ नही मेरे
पर दिल कहता तू आएगा एकदिन
हाथों में रखी हूँ ये फूल कमल के
दूंगी तुझे तू आएगा जिस दिन.
3 comments:
कान्हा प्रेम मे सराबोर एक सुन्दर रचना ।
प्रभु कृष्ण पर लिखी रचना से अधिक प्रेम रस और कहाँ मिल सकता है !
वाह ...
बहुत सुन्दर कविता
मन को भावुक कर दिया
आभार / शुभ कामनाएं
एक टिप्पणी भेजें