गुरुवार, 27 जनवरी 2011

कब आओगे कन्हैया,कब से तेरी रह तक रही.

कब आओगे कन्हैया

कब से तेरी रह तक रही.
आँसू नही है ये इंतज़ार
जो आँखों से बह रही.

मटकी लेकर यमुना तट पे
जाने कब तक खड़ी रही .
न मटकी फूटी न तू ही आया
आँखों से फिर वही झड़ी बही.

मुरली बजाने में है परेशानी तो
बिन मुरली के ही आ जा.
कब से बैठी है राधा तेरी मान कर
उसे मनाने तो आ जा.

मुझे कहते हैं यहाँ सब
तू न आएगा कभी अब
एकबार बस उनकी बात
को झूठलाने तो आ जा

बुद्धि तो मेरी अब साथ नही मेरे
पर दिल कहता तू आएगा एकदिन
हाथों में रखी हूँ ये फूल कमल के
दूंगी तुझे तू आएगा जिस दिन.

3 comments:

vandana gupta ने कहा…

कान्हा प्रेम मे सराबोर एक सुन्दर रचना ।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

प्रभु कृष्ण पर लिखी रचना से अधिक प्रेम रस और कहाँ मिल सकता है !

Santosh Pidhauli ने कहा…

वाह ...
बहुत सुन्दर कविता
मन को भावुक कर दिया

आभार / शुभ कामनाएं