कर रहा चोरी
आज पिटेगा कन्हैया
खम्भे की ओट से
देख रही मैया.
गुस्से में आ रही
मैया इधर
अब बचके कान्हा
जाए किधर
झूठा बहाना चलेगा नही
हाथ जो है मटकी में पड़ी
छुप गए संगी,कान्हा अकेला
खानी पड़ेगी माँ की छड़ी.
है कैसी ये लीला
ओ नटवर तुम्हारी.
सोच-सोच अँखिया
भर गई हमारी.
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