पर तुझसे भी है शिकायत
नाराजगी का थोडा -सा
हक जो तुम पे बनता है.
मर्जी थी मेरी कि
इस जहाँ में आ जाऊं
करा था हठ मैंने
कि दूर तुझसे जाऊं .
फिर भी क्यूं नही
तू रोका मुझे
मेरी गलती पे
क्यूं नही टोका मुझे .
आज मैं भी यहाँ बेचैन हूँ
तू भी राह देख रहा है मेरी
जब भी कष्ट में मै रोऊँ
पहले भरती होगी आँखें तेरी .
अब और मुझे आजादी न दे
बस अपना गुलाम बना ले
ओ मेरे सांवरे-सलोने कन्हैया
अपनी ये माया तू हटा ले.
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